Girls will get married in 21 years instead of 18 : 15 दिसंबर 2021 को कैबिनेट ने यह निर्णय लिया है कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल की जाएगी। यदि लड़की कि शादी का उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल तक कर दी जाएंगी तो इससे सरकार का क्या फायदा होगा ? और सरकार ऐसा करना क्यों चाहती है? जिससे कि सरकार का विरोध हो रहा हैं।
जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं की अभी तक लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल और लड़को की लिए शादी की उम्र 21 साल थी। 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले से यह कहा था कि हम लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने जा रहे हैं।

शादी की वैधानिक मान्यता कब मिलती है?
महत्वपूर्ण बिन्दू
- शादी की वैधानिक मान्यता कब मिलती है?
- मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने के लिए कौन सा डॉक्यूमेंट चाहिए ?
- इससे पहले भारत में कितने वर्ष की लड़कियों को शादी के लिए कानूनी मान्यता दी गई थी ?
- धर्म के अनुसार शादीयो की क्या मान्यता है ?
- शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate.) क्या है?
- मातृ मृत्यु दर ( Maternal Mortality Rate.) क्या है ?
- शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate.) और मातृ मृत्यु दर ( Maternal Mortality Rate.) बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
- भारत में लड़कियों की शादी के लिए सबसे पहले कौन सा एक्ट बनाया गया था ?
- स्पेशल मैरिज एक्ट ( special marriage act ) क्या है ?
- कैबिनेट ने यह अप्रूवल दे दिया तो क्या बदलाव देखने को मिलेंगे ?
- ऐसा करने से चाइल्ड मैरिज में कमी आएगी या बढ़ोतरी देखने को मिलेगा ?
- शादी के लिए 18 साल की बच्चियों की उम्र क्यों हो ?
- इसके लिए सरकार को क्या करने की आवश्यकता है?
शादी की उम्र बढ़ाने की जो तर्क है वह शुरू होता है शादी से और पता कैसे चलता है सरकार को कि हमने शादी कम उम्र में की है या ज्यादा उम्र में। हमारी शादी की वैधानिकता मैरिज रजिस्ट्रेशन ऑफिस से होती है। यानी एक प्रकार से जब तक हम मैरिज सर्टिफिकेट नहीं बनवा लेते हैं तब तक हमारी शादी की कानूनी मान्यता नहीं मिलती है।
मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने के लिए कौन सा डॉक्यूमेंट चाहिए ?
मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने के लिए जब हम मैरिज रजिस्टार के पास जाते हैं तो वह हमसे हमारी आयु प्रमाण पत्र मांगता है। यानी जब हमारी आय प्रमाण पत्र से यह क्लियर हो जाता है कि हमारी शादी सरकार की जो कानूनी समय सीमा है उस समय सीमा पर ही हुई है तब हमें मैरिज सर्टिफिकेट मिल जाता है और यदि उससे कम उम्र की लड़की से हुआ है तो ऐसी स्थिति में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत हम पर सजा का प्रावधान किया जाता है।
इससे पहले भारत में कितने वर्ष की लड़कियों को शादी के लिए कानूनी मान्यता दी गई थी ?
भारत कानूनी मान्यता या हिंदू मान्यता के अनुसार उन्ही शादीयो को वैध माना जाता है जिसमें महिलाओं की उम्र 18 साल है और पुरुषों की उम्र 21 साल हो। अगर आपकी उम्र इससे कम है तो आपकी शादी को वैध नहीं माना जाता है और उसका रजिस्ट्रेशन भी नहीं किया जाता है।
अगर आपने सरकार के द्वारा निर्धारित की गई आयु सीमा से कम उम्र के लड़की से शादी करते हैं तो उसे कानूनी मान्यता नहीं मिलती है और उसे चाइल्ड मैरिज कहा जाता है। चाइल्ड मैरिज देश के अंदर निषेध है।
धर्म के अनुसार शादीयो की क्या मान्यता है ?
धर्म के अनुसार अलग-अलग धर्मों में शादी को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। जहां हिंदुओं में शादी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 से होती है वहीं पर मुस्लिमों में शादी मुस्लिम कोर्ट से होती है। वहां पर लड़कियों की शादी 18 साल नहीं बल्कि लड़कियों के किशोर होने पर की जाती है। इसी प्रकार से भारत में अन्य जितनी भी शादियां होती है जो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत की जाती हैं उसके अंदर भी लड़कियों की शादी का उम्र 18 साल ही है।
अगर भारत में अब 21 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी होती है तो उसे भी चाइल्ड मैरिज माना जाएगा। प्रोविजन आफ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत उसे भी सजा का प्रावधान किया जाएगा।
शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate.) क्या है?
अगर कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है तो उनमें मां बनने की चांस भी कम उम्र में ही हो जाता है। अगर कोई लड़की कम उम्र में मां बनती है जिसके पास पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रीशन नहीं है शारीरिक विकास भी सही तरीके से नहीं हुआ है तो जो जन्म लेने वाली संतान है वह कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में कुपोषण के कारण जन्म लेने वाली संतान की मृत्यु हो जाती है। जिसे शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate.) कहा जाता है।
मातृ मृत्यु दर ( Maternal Mortality Rate.) क्या है ?
कई बार तो ऐसा देखा गया है की मां के शारीरिक विकास और न्यूट्रिशन की कमी से जो मां होती है वह एनीमिया का शिकार हो जाती है जिससे की प्रसव पीड़ा के दौरान उसकी मृत्यु हो जाती है। जिसे मातृ मृत्यु दर ( Maternal Mortality Rate.) कहा जाता है।
शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate.) और मातृ मृत्यु दर ( Maternal Mortality Rate.) बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
भारत में शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate.) और मातृ मृत्यु दर ( Maternal Mortality Rate.) का सबसे बड़ा कारण चाइल्ड मैरिज ही है। जिसको अगर रोक दिया जाए तो कुपोषण के कारण न तो बच्चों की मृत्यु होगी और ना ही मां को जान से हाथ धोना पड़ेगा। इसलिए समय-समय पर बच्चियों के शादी की उम्र की समय सीमा बढ़ाया जाता रहा है।
भारत में लड़कियों की शादी के लिए सबसे पहले कौन सा एक्ट बनाया गया था ?
भारत में बच्चियों की शादी को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले जो एक्ट बना था उसका नाम शारदा एक्ट था जो 1929 में बना था। इस शारदा एक्ट के अंदर बच्चियों की शादी की उम्र 15 वर्ष और लड़कों के शादी की उम्र 18 वर्ष रखी गई थी।
शारदा एक्ट 1929 को 1978 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम ( child marriage restraint act ) में परिवर्तित कर दिया गया था जिसमें लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़कों की उम्र 21 वर्ष कर दी थी। जो अभी तक चली आ रही थी।
भारत में आज के समय यदि कोई व्यक्ति 18 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करता है तो उसे बाल विवाह निषेध अधिनियम ( Prohibition of Child Marriage Act.) 2006 के तहत सजा का प्रावधान किया गया है।
भारत में शादी को मान्यता देने के लिए भी एक कानून है जिसका नाम हिंदू मैरिज एक्ट 1955 है। आपकी शादी कानूनी रूप से तभी बैध मानी जाती है जब आपके पास मैरिज सर्टिफिकेट हो। मैरिज सर्टिफिकेट देने का जो प्रावधान है वह हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत किया गया है।
जिसमें लड़की की शादी 18 वर्ष और लड़की की शादी 21 वर्ष रखी गई है। वहीं पर इस्लाम धर्म में लड़की की शादी उसके किशोर अवस्था को माना गया है। भारत में जरूरी नहीं है कि सारी शादियां हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ही हो।
स्पेशल मैरिज एक्ट ( special marriage act ) क्या है ?
बहुत सी शादियां ऐसी होती है जिसमें लड़की किसी दूसरे धर्म की और लड़का किसी दूसरे धर्म का होता है जिसमें उनकी शादी का सर्टिफिकेट स्पेशल मैरिज एक्ट ( special marriage act ) 1954 के आधार पर दी जाती है। स्पेशल मैरिज एक्ट में भी लड़की की शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़की की शादी की उम्र 21 वर्ष रखी गई है।
कैबिनेट ने यह अप्रूवल दे दिया तो क्या बदलाव देखने को मिलेंगे ?
यदि कैबिनेट ने यह अप्रूवल दे दिया कि अब लड़की की शादी की उम्र 18 वर्ष नहीं बल्कि 21 वर्ष होगी तो ऐसी स्थिति में पहले से चली आ रही हिंदू मैरिज एक्ट 1955, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम 1978 इन तीनों कानूनों में संशोधन करना पड़ेगा।
ऐसा करने से चाइल्ड मैरिज में कमी आएगी या बढ़ोतरी देखने को मिलेगा ?
सरकार ने जो लड़कियों की शादी के लिए उम्र 18 वर्ष रखी थी उस समय भी चाइल्ड मैरिज में 2019-20 में 23% शादियां हुई थी। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी 23% हुई थी जो कि बहुत ज्यादा है।
ऐसे में सरकार इन आंकड़ों को कम करने के बजाए और बढ़ा देगी अर्थात जो चाइल्ड मैरिज 23% थी वहां जब लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष की जाएगी तब यह आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा। यह सभी आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( National family health survey ) द्वारा जारी की गई है।
शादी के लिए 18 साल की बच्चियों की उम्र क्यों हो ?
सरकार ने इसके लिए एक कमेटी बनाई वर्ष 2020 के जून महीने में जिस कमेटी का नाम जया जेटली है। समता पार्टी की प्रेसिडेंट थी जया जेटली जी जिन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई जिनमें बीके पाल को लिया गया और विभिन्न विभागों के सेक्रेटरी बुलाए गए।
इस समिति को कहा गया कि आप यह आंकड़े इकट्ठा करिए की भारत में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर क्यों बढ़ रही है इसके पीछे क्या कारण है। तो यह समिति ने 16 यूनिवर्सिटी से आंकड़े इकट्ठा किए जिसमें यह पाया गया कि आज की जो लड़कियां हैं वह यह चाहती है कि लड़की और लड़कों की उम्र बराबर हो।
जया जेटली कमेटी के बातों को मानते हुए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले की प्राची से यह एलान किया था कि आने वाले कुछ समय में हम इस पर कोई कानून लाएंगे और इसकी समय सीमा को भी बढ़ाएंगे।
हमारे समाज में एक तबका ऐसा भी है जहां पर बच्चियों की पढ़ाई कराना और 18 वर्ष तक घर में रखना एक बहुत बड़ी बोझ लगती है। जिससे उनको यह लगने लगता है कि आने वाला समय उनके लिए और भी चुनौतीपूर्ण होने वाले है।
वही दूसरे तबके के लोग उन्हें हीन नजर से देखने लगते है और कहते है कि आपके यहां तो चाइल्ड मैरिज होता है। इससे वह लोग मुख्यधारा में जुड़ने के बजाय उनसे दूर होते चले जाते है।
इसके लिए सरकार को क्या करने की आवश्यकता है?
अगर इसमें इतना बड़ा परिवर्तन किया जा रहा है तो इसका प्रसारित किया जाना भी जरूरी है। इसको अधिक से अधिक मात्रा में विज्ञापन करने की भी आवश्यकता है। इसके अभाव में बहुत सारी शादियां लीगल के जगह इन लीगल तरीके से हो जाएंगी। जिससे बहुत सारी महिलाओं का अस्तित्व संकट में आ जाएगा।

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